राम: समर्पण और चरित्र का शाश्वत आदर्श
- H.H. Raseshwari Devi Ji
- 7 अप्रैल
- 2 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 8 अप्रैल

आज की दुनिया में जहाँ रिश्ते क्षणिक और समर्पण दुर्लभ हो गया है, वहाँ भगवान राम का जीवन निष्ठा, मर्यादा और त्याग का प्रकाशस्तंभ है। उनका सीता जी के प्रति प्रेम केवल एक भावनात्मक संबंध नहीं, बल्कि भक्ति और धर्म का आदर्श है। जब रावण ने सीता जी का अपहरण किया, तो राम जी ने पर्वत, जंगल और समुद्र पार किए, युद्ध लड़ा और उन्हें सम्मान सहित वापस लाए। उनका समर्पण इतना सच्चा था कि जब समाज के दबाव में सीता को गर्भावस्था में वन भेजना पड़ा, तब भी उन्होंने दूसरी पत्नी नहीं ली और न ही कभी सीता को हृदय से अलग किया।
यज्ञों में जहाँ पत्नी की उपस्थिति अनिवार्य होती है, वहाँ राम जी ने सीता की स्वर्ण प्रतिमा को अपने पास स्थान दिया। वन में पुनर्मिलन के समय सीता जी ने यह देखा और समझा—राजा भले ही रानी से दूर हो, राम कभी सीता से दूर नहीं हुए। जब सीता धरती में समा गईं, तब भी राम जी ने उन्हें साकेत लोक में स्वयं से पहले स्थान दिया। राम जी ने कभी उनकी मर्यादा को नहीं ठुकराया। लव-कुश को अपना उत्तराधिकारी बनाया। उनका प्रेम सांसारिक सीमाओं से परे था—शुद्ध, धैर्यपूर्ण और शाश्वत।
यह दया और धर्मप्रियता उनके जीवन में हर कदम पर दिखाई देती है। उन्होंने अहिल्या को मुक्त किया, केवट को अपनाया, सुग्रीव को संरक्षण दिया, विभीषण को न्याय और एक पापी को, जिसने सीता का अपमान किया था, उसके लिए भी एक अलग लोक की रचना की। किसी को भी साकेत लोक से वंचित नहीं किया—यहाँ तक कि पापी को भी नहीं। रावण जैसे शत्रु ने भी मरते समय राम की महानता स्वीकार की—"जब तक मैं जीवित था, तुम लंका में प्रवेश नहीं कर सके, और जब मैं जाऊँगा, साकेत लोक में तुमसे पहले पहुँचूँगा।"
राम जी केवल एक राजा नहीं थे। एक आदर्श पुत्र के रूप में उन्होंने वनवास को मौन स्वीकार किया, एक भाई के रूप में भरत के राज्यारोहण पर हर्षित हुए, एक पति के रूप में नितांत वफादार रहे और एक योद्धा के रूप में धर्म के लिए लड़े।
आज भले ही राम जैसा राजा, भरत जैसा भाई, या सीता-राम जैसा प्रेम ना मिले—लेकिन हम अपने जीवन में राम के गुणों की सुगंध ला सकते हैं। जहाँ भी जीवन हमें रखे, वहाँ हमारे चरित्र से पीड़ा में उद्देश्य और कर्तव्य में भक्ति प्रकट हो।
राधे राधे।
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